घर में घिरे दिग्गज..! बीजेपी ने मंत्रियों के सामने उठाई राम, लखन, ईश्वर और विजय की चुनौती!
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में वीआईपी सीटों पर अच्छी टक्कर देखने को मिल सकती है। भाजपा ने पूरी रणनीति के साथ कांग्रेस के मंत्रियों के सामने प्रत्याशी खड़ा किया है।
रायपुर : छत्तीसगढ़ में बीजेपी 5 साल पहले खोई 15 साल पुरानी सत्ता वापस पाने के लिए बड़ी रणनीति के साथ विधानसभा चुनाव में उतरी है. इस बार पार्टी किसी भी कीमत पर जीत हासिल करना चाहती है. बीजेपी के इस संकल्प की झलक उम्मीदवारों की घोषणा में भी दिख रही है. पार्टी ने टिकट बंटवारे के अपने सभी पुराने मापदंडों को किनारे रख दिया है. एक ही परिवार के लोगों को टिकट देने समेत कई प्रयोग किए गए हैं. पार्टी ने पैराशूट उम्मीदवार उतारने से भी परहेज नहीं किया है.
पार्टी ने एक बड़ी रणनीति के तहत मुख्यमंत्री भूपेश बघेल समेत सभी मंत्रियों को उनके ही घर में घेरने की कोशिश की है. बीजेपी ने सीएम और मंत्रियों के सामने ऐसे उम्मीदवार उतारे हैं, जिससे मुकाबला एकतरफा नहीं रहेगा. इसके जरिए बीजेपी सीएम और मंत्रियों को ज्यादा से ज्यादा समय तक अपने इलाके में ही रखना चाहती है.
भाजपा ने मुख्यमंत्री बघेल के सामने उनके भतीजे और दुर्ग सांसद विजय बघेल को मैदान में उतार :
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हैं। भाजपा ने मुख्यमंत्री बघेल के सामने उनके भतीजे और दुर्ग सांसद विजय बघेल को मैदान में उतार दिया है। विजय बघेल 2008 में भूपेश बघेल को हरा चुके हैं। ऐसे में सीएम बघेल के लिए पाटन आसान नहीं होगा। सीएम बघेल को अपने क्षेत्र को ज्यादा से ज्यादा समय देना पड़ेगा। विजय के बदले भाजपा पाटन से किसी दूसरे को टिकट देती तो भूपेश दूसरी सीटों पर प्रचार के लिए ज्यादा समय दे पाते। विजय सीएम भूपेश के लिए कितनी बड़ी चुनौती है यह चुनाव के इन आंकड़ों से समझा जा सकता है।
2003 के विधानसभा में दोनों पहली बार आमने-सामने थे। भूपेश कांग्रेस से और विजय एनसीपी के प्रत्याशी थे। यह चुनाव 6909 वोट के अंतर से भूपेश जीत गए थे। उन्हें 44217 और विजय को 37308 वोट मिला था।
2008 में फिर दोनों आमने-सामने आए। इस बार विजय भाजपा प्रत्याशी के रुप में मैदान में थे। इस बार विजय ने 7842 वोट से भूपेश को हरा दिया । वियज को कुल 59000 और भूपेश को 51158 वोट मिला।
2013 में तीसरी बार दोनों फिर पाटन के चुनावी मैदान में उतरे। इस बार 9343 वोट के अंतर से भूपेश ने जीत दर्ज की। उन्हें कुल 68185 और विजय को 58842 वोट मिला।
2018 में भाजपा ने विजय को टिकट नहीं दिया। उनके स्थान पर मोती लाल साहू को भूपेश के खिलाफ पाटन से टिकट दिया। इस बार भूपेश की जीत का अंतर बढ़कर सीधे 27477 पहुंच गया। भूपेश को कुल 84352 और मोतीलाल को 56875 वोट मिला।
अमरजीत के सामने खड़ी की राम की चुनौती :
सीतापुर सीट से लगातार 4 बार के विधायक और कैबिनेट मंत्री अमरजीत भगत के सामने भाजपा ने राम कुमार टोप्पो को टिकट दिया है। राम कुमार सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में सेवाए दे चुके हैं। राम कुमार की क्षेत्र में लोकप्रियता को देखते हुए ही भाजपा ने उन्हें टिकट दिया है। क्षेत्र के लोगों ने अनुसार राम कुमार मंत्री भगत को उनके क्षेत्र में घेरने में काफी हद तक सफल रहे हैं। पिछले कई दिनों से भगत अपने क्षेत्र में ही व्यस्त हैं।
ताम्रध्वज के सामने युवा प्रत्याशी :
छत्तीसगढ़ में साहू समाज सबसे बड़ा वोट बैंक है। इसी समाज से आने वाले प्रदेश सरकार में गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू दुर्ग ग्रामीण सीट से चुनाव मैदान में है। 2018 में वे दुर्ग सांसद रहते इस सीट से विधायक का चुनाव लड़े थे और जीते थे। भाजपा ने साहू समाज के इस बड़े नेता के सामने ललित चंद्राकर जैसे युवा को प्रत्याशी बनाकर बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। चुनाव प्रचार के दौरान चंद्राकर उन्हें दुर्ग ग्रामीण क्षेत्र में कितने समय तक रोक कर रख पाएंगे यह तो आने वाला समय बताए, लेकिन फिलहाल करीब महीनेभर से ज्यादा समय से ताम्रध्वज अपने क्षेत्र से बाहर नहीं निकल पाए हैं।
साजा में रविंद्र के सामने ईश्वर :
कांग्रेस के दग्गिज नेता और वरिष्ठ मंत्री रविंद्र चौबे एक मात्र 2013 के चुनाव को छोड़ दें तो आज तक वे साजा सीट से हारे नहीं हैं। भाजपा ने उनके सामने ईश्वर साहू को मैदान में उतारा है। साहू का कोई राजनीतिक बैक ग्राउंड नहीं है, लेकिन वे भाजपा के हिंदुत्वकार्ड का हिस्सा है। ईश्वर साहू के पुत्र भुवनेश्वर साहू की बेमेतरा में हत्या कर दी गई थी। मामला लव जिहाद का बताया गया। साहू के जरिये भाजपा न केवल साजा बल्कि उसके आसपास के सीटों पर हिंदु वोटों का ध्रुवीकरण करना चाह रही है। ऐसे में चौबे को अपने निर्वाचन क्षेत्र में डटना पड़ गया है।
अनिला के सामने कांग्रेस के बागी :
राज्य सरकार में एक मात्र महिला मंत्री और डौंडी लोहरा सीट से लगातार दूसरी बार की विधायक अनिला भेंड़िया को घेरने के लिए भाजपा ने कांग्रेस के ही बागी को मैदान में उतार दिया है। पार्टी ने इस सीट से देवलाल ठाकुर को टिकट दिया है। कांग्रेस से बगावत कर 2018 में इस सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में चुनाव लड़ चुके हैं। ठाकुर 21360 वोट के साथ तीसरे स्थान पर रहे। जिला पंचायत के अध्यक्ष रह चुके ठाकुर अपने समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए। ऐसे में कांग्रेस उन्हें हल्के में लेने की गलती नहीं कर सकती।
आरंग में बढ़ी शिव की मुश्किलें :
डॉ. शिव कुमार डहरिया कांग्रेस की सरकार में बड़े एससी चेहरा माने जाते हैं। सरकार में नगरीय प्रशासन मंत्री हैं। भाजपा ने उनके सामने गुरु खुशवंत साहेब के रुप में बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। वे सतनामी समाज के बड़े धर्मगुरु गुरु बालदास साहेब के पुत्र हैं। गुरु बालदास वहीं नेता हैं जिनकी वजह से 2013 में राज्य की 10 में से 9 एससी सीटें भाजपा के खाते में गई थी। गुरु खुशवंत को पहली बार भाजपा से टिकट मिला है। ऐसे में उनके पिता भी उन्हें विधायक बनाने के लिए पूरी ताकत लगाएंगे। इसकी वजह से डॉ. शिव कुमार के लिए चुनौती बड़ी हो गई है।
कवर्धा में अकबर के सामने विजय के रुप में बड़ी चुनौती :
मोहम्मद अकबर में प्रदेश सरकार और कांग्रेस का बड़ा अल्प संख्यक चेहरा हैं। भाजपा ने उनके सामने विजय शर्मा जैसे कट्टर हिंदुवादी चेहरा को लाकर खड़ा कर दिया है। कवर्धा में झंडा विवाद के बाद भड़की सांप्रदायिक हिंसा में विजय आरोपी हैं और जेल भी जा चुके हैं। विजय को अकबर के लिए बड़ी चुनौती माना जा रहा है। बताया जा रहा है कि टिकट की घोषणा के पहले ही अबकर अपने क्षेत्र में सक्रिय हैं।